बात थी मोहब्बत की...
उम्र भर की चाहत की...
भीड़ में ज़माने की...
साथ साथ चलना था...
इम्तिहा भी आने थे...
ज़िन्दगी के सब ही पल...
साथ ही बिताने थे...
जाने उसने क्या सोचा...
बस एक पल में यूँ उसने...
बात ख़त्म कर डाली..
ज़िन्दगी जो पूरी थी...
वो अधूरी कर डाली...
पर कौन उसको समझाए..
मोहब्बत के मौसम भी...
रोज़ तो आते नहीं...
यूँ ज़िन्दगी में अपनों को...
छोड़ तो जाते नहीं...
उम्र भर की चाहत की...
भीड़ में ज़माने की...
साथ साथ चलना था...
इम्तिहा भी आने थे...
ज़िन्दगी के सब ही पल...
साथ ही बिताने थे...
जाने उसने क्या सोचा...
बस एक पल में यूँ उसने...
बात ख़त्म कर डाली..
ज़िन्दगी जो पूरी थी...
वो अधूरी कर डाली...
पर कौन उसको समझाए..
मोहब्बत के मौसम भी...
रोज़ तो आते नहीं...
यूँ ज़िन्दगी में अपनों को...
छोड़ तो जाते नहीं...
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