Wednesday, June 8, 2011

jee chahta hai......

कभी अपनी हंसी पर भी गुस्सा आता है,
कभी सारे जहाँ को हँसाने को जी चाहता है...

कभी छुपा लेते हैं ग़मों को दिल के किसी कोने में,
कभी किसी को सब कुछ सुनाने को जी चाहता है...

कभी रोता नहीं दिल टूट जाने पर भी,
और कभी बस यूँ  ही आंसू बहाने को जी चाहता है...

कभी हंसी सी आ जाती है भीगी यादो में,
तो कभी सब कुछ भुलाने को जी चाहता है...

कभी अच्छा सा लगता है आज़ाद उड़ना कहीं,
और कभी किसी की बाँहों में सिमट जाने को जी चाहता है...

कभी सोचते हैं के हो कुछ नया इस ज़िन्दगी में,
और कभी बस ऐसे ही जिए जाने को जी चाहता है.....

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